21-04-73   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

जैसा नाम वैसा काम

पूज्यनीय बनाने वाले परम पूज्य पिता, राज़-युक्त बनाने वाले राज़दार, वरदानी, महादानी, मधुबन निवासी बहनों को देख शिवबाबा बोले:-

इस ग्रुप को कौन-सा नाम कहें? मधुबन निवासियों को क्या कहा जाता है? जो भी यहाँ बैठे हैं सभी अपने को ऐसा पद्मापद्म भाग्यशाली समझकर के चलते हो? मधुबन निवासियों के कारण ही मधुबन की महिमा है। मधुबन का वातावरण बनाने वाला कौन? तो जो मधुबन की महिमा गाई हुई है, क्या वही महिमा हरेक अपने जीवन में अनुभव करती हो?

मधुबन को महान् भूमि कहा जाता है। तो महान् भूमि पर निवास करने वाली अवश्य महान् आत्माएं ही होंगी। तो वे महान् आत्माएं हम हैं-क्या इस रूहानी नशे में रहती हो? महान् आत्मा जिसका हर कर्म और हर संकल्प महान् होता है। तो ऐसे महान् हो, जिसका एक संकल्प भी साधारण, कभी व्यर्थ न हो और एक कर्म भी साधारण वा बगैर अर्थ न हो क्योंकि उनका हर कदम, हर नजर अर्थ-सहित होता है। क्या ऐसी अर्थ-स्वरूप महान् आत्माएं हो? उनको कहा जाता है -- महान् अर्थात् मधुबन निवासी।

नाम तो मधुबन निवासी है तो ज़रूर अर्थ-सहित नाम होगा? तो ऐसे रोज का अपना पोतामेल चेक करते हो? कि जो-कुछ भी इन कर्मेन्द्रियों के द्वारा कर्म हुआ, वह अर्थ-सहित हुआ? समय भी जो बीता, वह सफल हुआ अर्थात् महान् कार्य में लगाया? ऐसा पोतामेल अपना देखती हो कि सिर्फ मोटी-मोटी बातें ही देखती हो? जो समझते हैं कि इसी प्रकार से हम अपनी चैकिंग करते हैं तो वे हाथ उठावें। महान् आत्माओं के हर कर्म का चरित्र के रूप में गायन होता है। महान् आत्माओं के हर्षितमूर्त्त, आकर्षण-मूर्त्त और अव्यक्त-मूर्त्त का मूर्ति के रूप में यादगार है। ऐसे अपने को देखो कि सारे दिन में जो हमारी-मूर्त्त व सीरत रहती है वह ऐसी है जो मूर्त्ति बन पूजन में आये और हमारे कर्म ऐसे हैं जो हमारे चरित्र रूप में गायन हों? यह लक्ष्य है ना?

जब यहाँ सीखने व पढ़ने आती हो तो अन्तिम लक्ष्य क्या है? वा संगमयुग का लक्ष्य क्या है? यही है ना? संगम युग का कर्म ही चरित्र के रूप में गायन होता है। संगम युग के प्रैक्टिकल जीवन, देवता के रूप में पूजे जाते हैं। तो वह कब होगा? अभी का गायन है तो अभी ही होगा ना? क्या सतयुग में ऐसी बनेंगी? वहाँ तो सभी हर्षित होंगे तो यह हर्षित मुख हैं, यह भी कहेगा कौन? यह तो अभी ही कहेंगे ना? जो सदा हर्षित नहीं रहते हैं वही वर्णन करेंगे कि यह हर्षितमुख हैं। ऐसी मूर्त्त वा ऐसे कर्म प्रैक्टिकल में हैं?

जैसे अभी सुनने के समय मुस्कराती हो अर्थात् महस्स करती हो, वह मुस्कराना कितना है? महसूस करती हो, तब तो मुस्कराती हो? तो ऐसे ही हर रोज अपने कर्म की महसूसता व चैकिंग करने से कोई भी पूछेगा तो फौरन जवाब देंगी। अभी सोचती हो कि हाथ उठावें कि नहीं उठावें? फलक से हाथ क्यों नहीं उठाती हो? संकोच भी क्यों होता है?-कारण? तो ऐसे ही अपनी सम्पूर्ण स्टेज को स्वरूप में लाओ। सिर्फ वाणी में नहीं। लेकिन स्वरूप में। जो कोई भी आप लोगों के सामने आये तो जैसे कि आप के जड़ चित्र के आगे जाते ही उन को महान् समझते अपने को पापी और नीच सहज ही समझ लेते हैं अर्थात्-एक सेकेण्ड में अपना साक्षात्कार कर लेते हैं। मूर्ति कहती तो नहीं है कि तुम नीच हो। लेकिन स्वयं ही साक्षात्कार करते हैं। ऐसे ही आप लोगों के सामने कोई भी आये तो ऐसे ही अनुभव करे कि यह क्या हैं और मैं क्या हूँ। यह स्टेज आनी तो है ना? वो कब आयेगी? जब कि ज्ञान का कोर्स समाप्त हो, रिवाइज़ कोर्स चल रहा है तो सिर्फ थ्योरी में रिवाइज़ हो रहा है या प्रैक्टिकल में? प्रैक्टिकल में भी कोर्स पूरा होना चाहिए ना? वा रिवाइज़ जब समाप्त होगा तब प्रैक्टिकल दिखायेंगे? क्या सोचा है? क्या इसके लिए समय का इन्तजार कर रही हो? समय आयेगा तो सभी ठीक हो जायेगा? क्या ऐसा समझती हो? यह क्लास कभी किया है? अपने पुरूषार्थ को तीव्र करने के लिए अपनी शक्ति अनुसार कभी प्लान्स बनाती हो या बना बनाया प्लान मिलेगा तो चलेंगी?

बापदादा तो यही देखते हैं कि जो मधुबन निवासी हैं वह सभी के सामने सैम्पल हैं। सैम्पल पहले तैयार किया जाता है ना? मधुबन निवासी सैम्पल हैं या फिर सैम्पल अब तैयार हुआ है? सैम्पल तैयार होता है तो उसकी तरफ इशारा कर बताया जाता है कि ऐसा माल तैयार हो रहा है। तभी फिर उसको देख दूसरे लोग सौदा करते हैं। पहले सैम्पल तैयार होने से बापदादा ऐसा इशारा दे दिखावें कि ऐसा बनना है। सैम्पल बनने के लिए कोई मुश्किल पुरूषार्थ नहीं है। बहुत सिम्पल पुरूषार्थ है। सिम्पल पुरूषार्थ एक शब्द में यही हुआ कि साथ में बाप का सिम्बल (Symbol) सामने रखो। एक शब्द का पुरूषार्थ तो बहुत हुआ ना? अगर सदा सिम्बल सामने हो तो पुरूषार्थ में सिम्पल हो जाए। पुरूषार्थ सिम्पल होने से सैम्पल बन जायेंगे।

मधुबन निवासियों को कितने इंजन लगे हुए हैं? (किसी ने कहा चार)। फिर तो सेकेण्ड में पहुँचना चाहिए। सभी से सहज पुरूषार्थ का लाभ वा गोल्डन चॉन्स मधुबन निवासियों को मिला हुआ है। यह भी मानती हो, मानने में, जानने में भी होशियार हो और बोलने में तो हो ही होशियार। बाकी मानने योग्य बनने में देरी क्यों? जितना माननीय योग्य बनेंगे उतना ही वहाँ पूजनीय योग्य बनेंगे। यहाँ आपके कर्म को देखने वाले अगर श्रेष्ठ नहीं मानते हों, तो पूजने वाले भी श्रेष्ठ मानकर पुजारी कैसे बनेंगे? जितना माननीय उतना पूजनीय का हिसाब है। जो पूजनीय बनेंगे उनको देख हर्षित होते हैं। अब बनना है वा सिर्फ देखकर हर्षित होना है? जितना साज-युक्त हो उतना ही राज़युक्त बनो। साज़ बजाने में होशियार हो ना? साज सुनने के इच्छुक भी कितने होंगे! इसमें तो पास हो ना? जितना साज़-युक्त उतना राज़युक्त बनो। राज़युक्त जो होता है उनके हर कदम में राज़ भरा हुआ होता है। ऐसे राज़-युक्त वा साज़-युक्त दोनों का बैलेन्स ठीक रखना है।

मधुबन निवासी मोस्ट लक्की स्टार्स हैं। जितना लक्की हो उतना सर्व के लवली भी बनो। सिर्फ लक्क में खुश न होना। लक्की की परख लवली से होती है। जो लक्की होगा वह सर्व का लवली ज़रूर होगा। अभी देखते और चलते, सर्व को स्नेह देने व करने का कार्य करना है। ज्ञान देना और लेना यह स्टेज तो पास की। अभी स्नेह की लेन-देन करो। जो भी सामने आये, सम्बन्ध में आये तो स्नेह देना और लेना है। इसको कहा जाता है सर्व के स्नेही व लवली। ज्ञान का दान ब्राह्मण को तो नहीं करना है, वह तो अज्ञानियों को करेंगे। ब्राह्मण परिवार में फिर इस दान के महादानी बनो। जैसे गायन है ‘ना दे दान तो छूटे ग्रहण’। जो भी कमजोरियाँ रही हुई हैं वह सभी प्रकार के ग्रहण इस महादान से छूट जायेंगे। समझा? अभी देखेंगे इस दान में कौन-कौन महादानी बनते हैं। स्नेह सिर्फ वाणी का नहीं होता है लेकिन संकल्प में भी किसके प्रति स्नेह के सिवाय और कोई उत्पत्ति न हो। जब सभी के प्रति स्नेह हो जाता है तो स्नेह का रिसपॉन्स सहयोग होता है। और सहयोग की रिजल्ट सफलता होती है। जहाँ सर्व का सहयोग होगा तो वहाँ सफलता सहज होगी। तो सभी सफलता मूर्त्त बन जायेंगे। अब यह रिजल्ट देखेंगे। अच्छा।

इस मुरली के विशेष तथ्य

1. महान् आत्मा वह जिसका हर संकल्प, हर कर्म महान् हो। एक संकल्प भी साधारण व व्यर्थ न हो, कोई भी कर्म साधारण व बगैर अर्थ न हो तो चेक करो कि इन कर्मेन्द्रियों द्वारा जो भी कर्म हुआ, वह अर्थ सहित हुआ, समय को सफल कार्य में लगाया? महान् आत्माओं का हर कर्म चरित्र के रूप में गायन होता है।

2. जैसे आप के जड़ चित्रों के आगे जाकर खुद ही झुक जाते हैं। अपने को नीच और मूर्त्ति को महान् समझते हैं। मूर्त्ति कहती तो नहीं कि तुम नीच हो। लेकिन स्वयं ही अपना साक्षात्कार करते हैं। ऐसे ही आप लोगों के सामने कोई भी आये तो ऐसा अनुभव करे कि यह क्या हैं और हम क्या हैं?

3. सैम्पल तैयार होने पर ही इशारा कर बताया जाता है कि ऐसा माल तैयार हो रहा है। फिर उसको देख दूसरे लोग सौदा करते हैं। सैम्पल बनने के लिये सदा बाप का सिम्बल सामने रखो।